अभिमान से मुक्त हुए बिना मानव जीवन धन्य नहीं हो सकता- मानस मंदाकिनी दीदी
अभिमान से मुक्त हुए बिना मानव जीवन धन्य नहीं हो सकता।
इंदौर। अहंकार का पर्दा पतन का सबसे बड़ा कारण होता है। बुद्धि पर विकार आ जाने पर अच्छे-अच्छे राजा-महाराजा और शासक भी अहंकार से बच नहीं पाते। अहंकार के कारण ही व्यक्ति अपने सामर्थ्य से ज्यादा सोचता और क्षमता से ज्यादा करने की कोशिश करता है। राजा बलि का प्रसंग उदाहरण है कि अभिमान के नशे में व्यक्ति ब्रह्मांड के स्वामी, अपने गुरू और भगवान को भी बौना समझने लगता है। जीवन की धन्यता यही है कि हम जैसे हैं, सहज, सरल रूप में रहकर अपना काम करें। अभिमान से मुक्त हुए बिना मानव जीवन धन्य नहीं हो सकता।
ये प्रेरक विचार हैं प्रख्यात मानस मर्मज्ञ श्रीराम किंकर की कृपापात्र शिष्य ‘ मंदाकिनी दीदी मां के, जो उन्होंने शनिवार शाम गीता भवन सत्संग सभागृह में गीता भवन ट्रस्ट, एकल हरि सत्संग समिति एवं राधे सत्संग महिला मंडल के सहयोग से आयोजित पांच दिवसीय श्रीराम कथा के दिव्य अनुष्ठान में व्यक्त किए प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट की ओर से राम ऐरन, मनोहर बाहेती, महेशचंद्र शास्त्री, रामविलास राठी, एकल हरि सत्संग समिति की ओर से श्रीमती कमल राठी, वीणा चौखानी, राजकुमारी मंत्री, उमा अग्रवाल तथा राधे सत्संग महिला मंडल की ओर से संस्थापक कांता अग्रवाल, सुशीला मोदी, साधना गोयल, सुमन अधिकारी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। दीदी मां के प्रवचनों का समापन रविवार, 15 सितम्बर को होगा। उसके पूर्व सायं साढ़े 4 से 7 बजे तक प्रवचन होंगे।
दीदी मां ने जीवन से जुड़े विषयों पर मार्गदर्शन करते हुए कहा कि व्यिक्त को अपने समार्थ्य का भान होना चाहिए। जहां अहंकार विराट हो जाता है, वहां व्यक्ति को अपने सामने छोटा और बौना लगने लगता है। अहंकार या अभिमान ऐसा शत्रु है, जो कहीं से भी घुसैपठ बना लेता है। भागवत का राजा बलि का प्रसंग इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जब भगवान विष्णु ने उनसे तीन पग जमीन मांग ली। अहंकार में डूबे राजा बलि को यह भी भान नहीं रहा कि पैर तो दो ही हैं, तीसरा पैर मांगने का काम तो कोई अवतार ही कर सकते हैं। यह बात उनके गुरू शुक्राचार्य ने समझ ली। गुरू और संत की भूमिका आदिकाल से महत्वपूर्ण मानी गई है। भारत के संदर्भ में तो गुरू के बिना जीवन शुरू ही नहीं होता।