श्रद्धा-विश्वास के बिना की गई भक्तिऔर सेवा सार्थक नहीं हो सकती
इंदौर,। सेवा के कई स्वरूप होते हैं। भागवत जैसे धर्मग्रंथ हमें भक्ति और सेवा के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। भगवान बुद्धि से नहीं, भक्ति से मिलेंगे। बुद्धि तर्क करती है और भक्ति विश्वास। श्रद्धा और विश्वास के बिना की गई भक्ति और सेवा भी निरर्थक ही होती है। सेवा निष्काम होना चाहिए। परमात्मा से जुड़े बिना मनुष्य जीवन सार्थक नहीं हो सकता।
वृंदावन से पधारे प्रख्यात भागवताचार्य डॉ. संजय कृष्ण सलिल ने जागृति महिला मंडल ट्रस्ट एवं बालाजी सेवा संस्थान ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में अग्रवाल पब्लिक स्कूल के पास बिचौली मर्दाना स्थित वैष्णो धाम मंदिर पर पर दिव्यांगों के सहायतार्थ आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान व्यक्त किए। कथा के दौरान प्राप्त धनराशि का उपयोग दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग, ट्रायसिकल, आपरेशन एवं उनकी अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए किया जाएगा। कथा शुभारंभ के पूर्व पूर्व श्रीमती विनोद अहलूवालिया, डॉ. राकेश गौर, वंदना जायसवाल, दीप्ति शर्मा, उषा बंसल, प्रभा खुराना, सरोज राठी, सरिता छाबड़ा, आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
*कथा में प्रसाद के साथ पौधों का वितरण*- जागृति महिला मंडल ट्रस्ट की प्रमुख श्रीमती विनोद अहलूवालिया एवं बालाजी सेवा संस्थान ट्रस्ट के प्रबंध संचालक डॉ. आर.के. गौर ने बताया कि शहर को हरियाली और पर्यावरण से आच्छादित करने के उद्देश्य से इस वर्षाकाल में घर-घर पौधे रोपने के लिए कथा में आने वाले भक्तों को प्रतिदिन फल एवं छायादार पौधे वितरित किए जा रहे हैं। उन्हें प्रसाद के साथ पौधे भेंट कर उनकी देखभाल एवं सुरक्षा का संकल्प भी दिलाया जा रहा है। वृंदावन से आए डॉ. संजय कृष्ण सलिल ने भी शहर में चलाए जा रहे पौधरोपण के अभियान की मुक्त कंठ प्रशंसा की और कहा कि स्वच्छता के बाद अब इंदौर पौधरोपण में भी नंबर वन आना चाहिए।
श्रीमद भागवत के सती चरित्र, शिव विवाह, शुकदेव- राजा परीक्षित एवं अन्य प्रसंगों की व्याख्या करते हुए डॉ. संजय कृष्ण सलिल ने कहा कि परमात्मा हमारा अदृश्य साथी है, जो हमें नजर आए बिना भी कदम-कदम पर हमारी मदद करता है। जन्म जन्मांतर का सच्चा सखा केवल परमात्मा ही हो सकता है, अन्य की नहीं। हमारा असली साथी और मार्गदर्शक वह परमात्मा ही है, जो हमारी एक पुकार पर हमारी मदद के लिए दौड़े चले आता है। परमात्मा से जब तक हमारा जुड़ाव नहीं होगा, मनुष्य जीवन भी सार्थक और धन्य नहीं हो सकता। हम जगत की चकाचौंध में फंसकर जगदीश को भूल रहे हैं। हमारी भक्ति और सेवा श्रद्धा और विश्वास के बिना फलीभूत नहीं हो सकती।