मदरहुड हॉस्पिटल्स ने 6 घंटे की किया, 68 दिनों में हासिल की शानदार रिकवरी|
इंदौर – हरप्रीत कौर (बदला हुआ नाम) और उनके पति अमनजोत, जो कि उज्जैन के एक किसान हैं, दोनो को जब अपनी प्रेगनेंसी के बारे में पता चला तो वह बहुत खुश थे। हालांकि, हरप्रीत को अपनी प्रेगनेंसी के दौरान कई चैलेंजेस का सामना करना पड़ा, जिसमें सैकंड ट्राइमेस्टर से हाई बीपी की परेशानी भी शामिल थी। प्रेगनेंसी के दौरान बीपी हाई होने के कई सारे प्रभाव हो सकते हैं, जैसे प्लेसेंटा में रक्त का प्रवाह कम होना, जिसके परिणामस्वरूप, भ्रूण को अपर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्राप्त हो सकते हैं, जिससे ग्रोथ स्लो होती है | जन्म के समय कम वजन या समय से पहले जन्म हो सकता है। 3 फरवरी 2024 को, हरप्रीत ने 36 सप्ताह के बजाए मात्र 25 सप्ताह और 4 दिन के गर्भ में एक बच्ची को जन्म दिया, जिसका वजन केवल 580 ग्राम था और जो कि प्रीमैच्योर थी। बच्चे को आगे के इलाज के लिए शिफ्ट करने के लिए इंदौर के मदरहुड अस्पताल से कनेक्ट किया। नियोनेटोलॉजिस्ट और नर्सों की एक टीम एनआईसीयू ऑन व्हील्स के माध्यम से उज्जैन पहुंची। मदरहुड हॉस्पिटल्स की एम्बुलेंस एक सर्व सुवीधा युक्त हाई एंड ट्रांसपोर्ट व्हीकल जिसमें सभी अत्याधुनिक एनआईसीयू सुविधाएं हैं जिनका उपयोग नवजात या गंभीर रूप से बीमार शिशुओं को ले जाने के लिए किया जाता है।
अल्ट्रासाउंड स्कैन के 5वें महीने के दौरान, यह पता चला कि फर्स्ट ट्वीन को कार्डियक संबधी समस्या नजर आई थी, जिसमें यह नजर आ रहा था कि चैम्बर ठीक तरह से नहीं बने है। नतीजतन, गर्भाशय में पहले जुड़वां को छोटा करने का निर्णय लिया गया। जहां तक दूसरे जुड़वां बच्चे का सवाल है, जो कि प्रीमैच्योर पैदा हुआ था और उसे समय से पहले जन्म से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, उसके माता-पिता को तुरंत इंदौर के मदरहुड हॉस्पिटल में रेफर किया गया था।
नवजात शिशु को श्वसन संबंधी परेशानी नजर आने के बाद उसे शुरुआती 15 दिनों के लिए नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन पर रखा गया था। अधिकांश अंग प्रीमैच्योर थे, इसलिए मस्तिष्क, पेट, आंतों, फेफड़े और हृदय की विशेष देखभाल की आवश्यकता थी। बच्चे को सेप्सिस, नियोनेटल हाइपर बिलीरुबिन (ऐसी स्थिति में नवजात शिशुओं के रक्त में बिलीरुबिन की अधिकता होती है, जिससे त्वचा और आंखों का पीलापन होता है, जिसे पीलिया भी कहा जाता है।) और एग्रेसिव रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी भी थी, जिसे सरल शब्दों में आँख की एक गंभीर समस्या जो समय से पहले जन्मे बच्चों को प्रभावित कर सकती है। यह तब होता है जब आंख के पिछले हिस्से में रक्त वाहिकाएं ठीक से विकसित नहीं होती हैं। यदि तुरंत इलाज न किया जाए तो इससे दृष्टि संबंधी समस्याएं या यहां तक कि अंधापन भी हो सकता है।
इंदौर के मदरहुड हॉस्पिटल्स में कंसल्टेंट पीडियाट्रिशियन और नोनटोलॉजिस्ट डॉ. सुनील पुरसवानी ने धीरे-धीरे भोजन देना शुरू किया, जो न्यूनतम मात्रा से शुरू हुआ और समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ता गया। इसका उद्देश्य 7-8वें दिन तक पूर्ण आहार प्राप्त करना था, हालांकि अत्यधिक प्रीमेच्योरिटी के कारण इस मामले में लगभग 10-12 दिन लग गए। शुरुआती समय में बच्चे की नाजुक त्वचा को मिनिमल हैंडलिंग की आवश्यकता होती थी, जिसमें अधिकांश इंटरवेंशन सेंट्रल लाइन पर केंद्रित होते थे। जैसे-जैसे बच्चे की त्वचा मैच्योर होती गई, पेरीफेरल आईवी लाइंस शुरू की गईं, और ऑक्सीजन सपोर्ट धीरे-धीरे कम हो गया। ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए शिशु को दवाएँ दी गईं। जॉन्डिस के मैनेजमेंट के लिए फोटोथेरेपी दी गई। रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी को संभालने के लिए डॉ. आशुतोष अग्रवाल द्वारा लेजर उपचार किया गया। मां की हेल्थ कंडीशन को ध्यान में रखते हुए कंगारू मदर केयर (केएमसी) का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं किया गया।
एनआईसीयू में ट्रीटमेंट का कोर्स 68 दिनों तक चला। इसके बाद 1780 ग्राम वजन वाले बच्चे को डिस्चार्ज कर दिया गया, और वर्तमान में वह धीरे-धीरे ठीक हो रहा है। शिशु को फॉलो अप चेकअप के लिए डेट दी गई है और वह अब बिल्कुल ठीक है।
कंडिशन के बारे में, डॉ. सुनील ने कहा, “मल्टीपल चैलेंजेस के साथ 580 ग्राम के इस नवजात शिशु की यात्रा हमारे इंटर डिसीप्लिनरी अप्रोच और विशेष देखभाल के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का उदाहरण देती है। अत्यधिक प्रिमैट्योरटी, रेस्पीरेट्री प्रॉब्लम और फीडिंग में परेशानियों का सामना करने के बावजूद, बच्चे की वेलबिंग के लिए सुनिश्चित करने के लिए मिनिमली इनवेसिव टेक्निक का इस्तेमाल किया। नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन, ग्रेजुअल फीडिंग और सावधानीपूर्वक मॉनिटरिंग ने ग्रोथ और डेवलपमेंट को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हम इस अनमोल नवजात शिशु के लिए निरंतर फॉलोअप प्रदान करना जारी रखे हुए है, यह बच्चे और पेरेंट्स दोनों के लॉन्ग टर्म हेल्थ और वेलबींग के प्रति हमारे डैडिकेशन को दर्शाता हैं।”
बच्चे के पिता श्री अमनजोत (बदला हुआ नाम) ने कहा, “यह यात्रा चुनौतियों से भरी थी क्योंकि बहुत सारी प्रिमैच्योर कंडिशन के कारण हमें अपने बच्चे को तत्काल उज्जैन से मदरहुड इंदौर स्थानांतरित करना पड़ा था। रिकवरी की प्रोसेस कठिन थी, लेकिन हम डॉ. सुनील और उनकी टीम के अटूट समर्थन और असाधारण देखभाल के लिए बेहद आभारी हैं। इस एक्सपीरियंस ने रेगुलर चेकअप और प्रिवेंटिव हेल्थ मेजर के महत्व पर प्रकाश डाला है, हमारी बच्ची अब अच्छा कर रही है, और उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए उसे नियमित फॉलो-अप दिलाते रहने के लिए पूरी तरह से डेडिकेटेड है।”
मदरहुड हॉस्पिटल का एनआईसीयू, एक टर्सरी केयर यूनिट है जो कि एक्सट्रीम प्रीमैच्योर बेबी को संभालने के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। जन्म के समय सबसे कम वजन 460 ग्राम वाले बच्चे का इलाज किया जाता है और ब्रांड का एनआईसीयू हाई फ्रीक्वेंसी वेंटिलेटर, जिराफ इनक्यूबेटर और बेडसाइड इकोकार्डियोग्राफी और सोनोग्राफी सहित आधुनिक सुविधाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है। एनआईसीयू की मुख्य ताकत समर्पित नर्सिंग स्टाफ है, जिसमें बेबी टू नर्सिंग स्टाफ का रेशियो 1:1 का है। यह रेशियो पर्सनलाइज्ड अटेंशन सुनिश्चित करता है और अन्य शिशुओं से क्रॉस-इंफेक्शन के जोखिम को काफी कम करता है। सर्वाइवल और न्यूरोलॉजिकल डेवलपमेंट के गए सकारात्मक परिणामों में योगदान देने वाले प्रमुख कारक नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन, अर्ली फीडिंग और मिनिमल हैंडलिंग का उपयोग थे। यह नियोनेटल इंटेंसिव केयर सेटिंग में विशेष देखभाल और मल्टी डिसीप्लिनरी अप्रोच के साथ-साथ शिशु और माता-पिता दोनों के लिए सपोर्टिव इंटरवेंशन की आवश्यकता को हाइलाइट करता है।