देवराज गुरु ने रक्षा विधान कर जो रक्षा सूत्र तैयार किया

इंदौर।देवराज गुरु ने रक्षा विधान कर जो रक्षा सूत्र तैयार किया व इंद्राणी ने इंद्र को बांधा ऐसा रक्षासूत्र आज भी बनता व बंधता है हमारे यहां श्रावण शुक्ल पूर्णिमा रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र (राखी )बांधने का प्रचलन वर्षों से चला आ रहा है । मप्र ज्योतिष एवम् विद्वत् परिषद के प्रदेशाध्यक्ष आचार्य पं रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि रक्षा सूत्र तैयार करने के लिए सर्व प्रथम मंत्रोचार पूर्वक स्थान का गोबर से लेपन व शुद्धि करण किया जाता है। इस क्रिया के लिए गंगाजल व गाय के गोबर का उपयोग करते है । इसके बाद हल्दी या कुमकुम से चौक पूरा जाता है ,चौकी पर जलपूरित कलश स्थापित किया जाता है, जो मांगलिक व शुभ होता है । कलश में वरुण देवता का आवाहन किया जाता है। एवम् पूजा होती है । कलशपूजा पाशबंधन से मुक्ति दिलाती है ।। ऐसे तैयार होते है रक्षा सूत्र : सूत्र निर्माण में रेशमी या ऊनी वस्त्र प्रयोग में लिया जाता है । इसमें केशर, चंदन, अक्षत, पीली सरसों,दूर्वा , सुगंधित पुष्प आदि पूजा सामग्री मंत्रोच्चार केसाथ रखी जाती है। उपर्युक्तसामग्री काअपना धार्मिक महत्व है।
पिछले छह दशक से रक्षा सूत्र बनाने की परंपरा चली आ रही है
आचार्य पंडित शर्मा वैदिक।ने बताया कि पिछले 6 दशक से भारद्वाज ज्योतिष एवम् आध्यात्मिक शोध।संस्थान के संस्थापक मेरे पूज्य पिताश्रीपंडित नानूराम शर्मा ज्योतिर्विद के मार्गदर्शन में स्वस्ति वाचनपूर्वक अभिमंत्रित रक्षा सूत्र तैयार किये जाते थे । आज भी परंपरा अबाध रूप से चली आ रही है । सर्व प्रथम अभिमंत्रित रक्षा पोटली रक्षासूत्र श्री गणेशजी, शिवजी, कुलदेवी, कुलदेवता व कुलभैरव को बांधने के दीर्घायु एवम् विजय की की कामना से यजमान को महामंत्र येनबद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल, तेन त्वा मनु बध नामी रक्षे।मां चल मां चल ,,इस। महामंत्र सेबँधवाना चाहिए। इस प्रकार से वैदिक विधि विधान से निर्मित रक्षा सूत्र को इंद्राणी ने इंद्र को बांधा था । जिससे असुरों से युद्ध में इंद्र की पुनः विजय हुई।तब से आज तक रक्षा बंधन ( रक्षा सूत्र ) की परंपरा चलीआ रही है। अचार्य पंडित रामचंद्र शर्मा वैदिक, अध्यक्ष मध्यप्रदेश ज्योतिष एवम् विद्वत परिषद , ।