इंदौरधर्म-ज्योतिष

संपत्ति की चकाचौंध के बीच अपनी संस्कृति भी जिंदा रखें

पति-पत्नी के बीच समर्पण का स्वरूप दूध में पानी की तरह होना चाहिए

इंदौर, । गृहस्थ जीवन की गाड़ी पति-पत्नी जैसे दो पहियों के संतुलन से चलती है। दोनों के बीच संतुलन और सामंजस्य के साथ एक-दूसरे के प्रति प्रेम, स्नेह और विश्वास भी होना चाहिए। पति-पत्नी के बीच समर्पण का स्वरूप दूध में पानी की तरह होना चाहिए, जिसे कोई अलग नहीं कर सके। दाम्पत्य जीवन वहीं सफल होगा, जहां विश्वास, त्याग और समर्पण भी साथ रहते हों। सम्पत्ति की चकाचौंध के बीच यदि अपनी संस्कृति भी कायम रहे तो घर-घर मेंं राम-सीता जैसे युगल हो सकते हैं। सीता भारतीय नारी का सबसे श्रेष्ठ और आदर्श प्रतीक है।
ये प्रेरक विचार हैं आचार्य पं. वीरेन्द्र व्यास के, जो उन्होने बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर के शिव-हनुमान मंदिर की साक्षी में चल रहे दिव्य श्रीराम कथा महोत्सव में व्यक्त किए। रविवार को पंचवटी निवास, गिद्धराज एवं शबरी चरित्र प्रसंग मनाया गया। कथा में आज भी मनोहारी भजनों पर नाचने-गाने का सिलसिला पूरे समय चलता रहा। कथा शुभारंभ के पूर्व संयोजक तुलसीराम-सविता रघुवंशी के साथ ठा. विजय सिंह परिहार, मुकेश सिंह गौतम, दुलेसिंह राठौड़, दीपेंद्र सिंह सोलंकी, पप्पू ठाकुर, उदयसिंह कुशवाह, विक्की ठाकुर, नवनीत सिंह सिसोदिया, महेंद्र सिंह, संजय सिंह सिंगर, भरोसे रघुवंशी एवं अभिषेक रघुवंशी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। महिला मंडल की ओर से शिव पुराण की आरती भी की गई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। संयोजक रेवतसिंह रघुवंशी के अनुसार कथा में सोमवार, 6 जनवरी को श्रीराम –सुग्रीव मित्रता तथा 7 जनवरी को रावण वध एवं रामराज्याभिषेक प्रसंगों की संगीतमय कथा होगी। प्रमुख उत्सव भी मनाए जाएंगे। कथा प्रतिदन दोपहर 1 से सांय 5 बजे तक हो रही है।
विद्वान वक्ता ने कहा कि वर्तमान में हमारे परिवार बिखर रहे हैं। राम और सीता की जोड़ी को भारतीय संस्कृति का आदर्श युगल माना जाता है। अर्थ प्रधान इस युग में पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है। धन कमाने की होड़ में भक्ति के लिए समय निकालना भी अब बड़ा काम हो गया है। सीता लक्ष्मी का स्वरूप है और राम विष्णु के। हमारा दाम्पत्य जीवन कैसा होना चाहिए, यह देखना है तो राम और सीता को देखें, जहां हर कदम पर स्नेह, सदभाव, विश्वास, त्याग और समर्पण जैसे अलंकरणों से इस युगल ने भारतीय संस्कृति में आदर्श मानक स्थापित किए हैं। यही कारण है कि हजारों वर्ष बाद भी न तो राम जैसा कोई हुआ है, और न सीता जैसी कोई होगी। जहां राम हैं, वहां विश्राम भी है।

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