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बचपन में रामायण, जवानी में महाभारत और वृद्धावस्थामें भागवत का मनन-मंथन जरूर करें – योगेश्वर दास

लोहारपट्टी स्थित खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में हुई विभिन्न प्रसंगों की व्याख्यान

इंदौर, । रामायण और भागवत जैसे धर्मग्रंथों के प्रकाश से पुरुषार्थ, ज्ञान, धर्म, अर्थ और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। भागवत ग्रंथ के स्वाध्याय और श्रवण से अंतरमन एवं बुद्धि का शुद्धिकरण होता है, लेकिन विडंबना है कि हम लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। जीवन को संवारना है तो हर घर में बाल्यकाल में रामायण, युवावस्था में महाभारत और वृद्धावस्था में भागवत का मनन और मंथन अवश्य होना चाहिए। भागवत के आयोजन को फैशन नहीं, अनुष्ठान बनाने की जरूरत है।
ये विचार हैं भागवताचार्य योगेश्वरदास महाराज महाराज के, जो उन्होंने लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याण धाम, खाड़ी के मंदिर पर राधा रानी महिला मंडल के सहयोग से हंस पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में भागवत ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस के प्रसंगों की कथा के दौरान व्यक्त किए । प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य एवं विश्व ब्राह्मण संघ के अध्यक्ष पं. योगेन्द्र महंत तथा म.प्र. ज्योतिष परिषद के अध्यक्ष आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा के आतिथ्य में श्रीमती वर्षा शर्मा, उर्मिला प्रपन्न, मंजू शर्मा, प्रफुल्ला शर्मा, हंसा पंचोली, ज्योति शर्मा कामाख्या, हेमलता वैष्णव, मधु गुप्ता आदि ने किया। अतिथियों का स्वागत पं. पवन शर्मा, पं. राजेश शर्मा, अशोक चतुर्वेदी, महंत यजत्रदास आदि ने किया।
भागवताचार्य योगेश्वरदास ने कहा कि भागवत स्वयं भगवान की वाणी है। यह ज्ञान का प्रसाद है, जो हमें स्वयं भगवान के श्रीमुख से मिल रहा है। हमारे जीवन में जितनी भौतिकता बढ़ेगी, बुद्धि भी वेदोंका विभाजन करने लगेगी। भागवत के श्रवण हेतु स्वर्गलोक में देवता भी तरसते हैं, लेकिन हम पर भगवान की महती कृपा है कि हमें यहां घर बैठे भागवत के संदेश और उपदेश श्रवण करने को मिल रहे हैं। संतों की कृपा और भगवान की करूणा के बिना सत्संग संभव नहीं है। सत्संग ही मनुष्य के जीवन की दशा और दिशा बदल सकते हैं।

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