सेंधवा; आजादी की लड़ाई में जनजातीय नायकों के योगदान को सबको जानने की आवश्यकता है- मुजाल्दे
सेंधवा शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नायकों के योगदान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित।

सेंधवा। शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सेंधवा में गुरुवार को स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नायकों के योगदान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई। जिसमें मुख्य वक्ता श्री वैभव सुरंगें कार्य प्रमुख, अखिल भारतीय जनजातीय युवा, नागपुर महाराष्ट्र, मुख्य अतिथि डॉ सखाराम मुजाल्दे अर्थशास्त्र अध्ययनशाला देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर, डॉ रैलास सेनानी अध्यक्ष जनभागीदारी समिति, प्राचार्य डॉ मीना भावसार, संगोष्ठी के संयोजक प्रो राजेश नावड़े एवं सह संयोजक प्रो अरुण सेनानी मंचासीन थे। डॉ सखाराम मुजाल्दे ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के बारे में बताते हुवे कहा कि अभी तक हमें आजादी की लड़ाई में कुछ लोगों के योगदान के बारे में ही बताया गया और पढ़ाया गया। जबकि वास्तव में योगदान की दास्तां बेहद लम्बी है। उसमे जंगलों के नायकों का अहम योगदान है, जो अभी भूला-बिसरा हुआ है। उन्हीं जनजातीय नायकों के योगदान को सबको जानने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा मैं भी इसी महाविद्यालय का छात्र रहा हूं और सम्पूर्ण विश्व विद्यालय के क्षेत्र में ऐसी ही संगोष्ठियों का नोड़ल अधिकारी बना हूं और राष्ट्रपति भवन से गांव-गांव तक जनजातीय इतिहास के लिए कार्य करने की जागरुकता के लिए प्रयासरत हूं।

जनजातीय समाज को गुलाम नहीं बनाया जा सकता-
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्री वैभव सुरंगें ने अपने वक्तव्य में कहा की शेरों का इतिहास यदि शिकारी लिखेगा तो कैसे लिखेगा। यह सत्यता जनजातीय नायकों के इतिहास की भी रही है। उनका इतिहास आज भी अज्ञात और अनाम इसलिए ही है कि उनके बारे में लिखा ही नहीं गया। जनजातीय समाज की विशेषता है कि उसे गुलाम नहीं बनाया जा सकता और वे समाज छोड़ कर नहीं रहते। अंग्रेजों ने बताया कि जंगलों में असभ्य लोग रहते हैं और हम उसे ही मानते आए रहे हैं। उस छबि को बदलने की जरूरत है। आज भी जनजातीय समाज में ऐसी व्यवस्था है जो व्यक्ति को न्याय दिलाने के साथ-साथ झगड़ा भी समाप्त कराती है। भानगढ़ की पहाड़ी भीलों की वीरता और स्वाभिमान की निशानी है। जनजातीय नायकों का इतिहास आपके आस -पास बिखरा पड़ा है। उसे जानने समझने और सहेजने और शोध कर उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। जिससे जनमानस में अपने बारे में बनी छबि को दुरुस्त किया जा सके।

जनजातीय नायकों के गौरवपूर्ण इतिहास को संग्रहित करने आवश्यकता-
डॉ रैलास सेनानी ने कहा जनजातीय नायकों का गौरवपूर्ण इतिहास को संग्रहित करने की महती आवश्यकता है। इसके लिए युवा पीढ़ी को बुजुर्गों का सहारा लेना होगा। क्योंकि उनके पास प्राप्त जानकारी के आधार पर ही जनजातीय नायकों की वास्तविक तस्विर आम जनता के सम्मुख प्रस्तुत कर सकते हैं। इस संगोष्ठी में वीडियो के द्वारा जनजाति नायक कोमुरम भिमुडो पर गीत विडियो का प्रदर्शन एंव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की जानकारी दी गई। खाज्या नायक के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन अक्षय अखाड़े एंव तानसेन जमरे की टीम ने किया। नृत्य लीला डुड़वे की टीम ने किया। इस कार्यक्रम में श्री मिथुन मकवाने, श्री कन्हैया सिसौदिया, श्री बद्रीप्रसाद शर्मा, डॉ गिरीश कानूनगो, श्री प्रितमराज बड़ोले, श्री हरचरण भाटिया, श्री विनोद तिवारी ,श्री प्रेमचंद सुराणा ,श्री सुरेश तेलंगु ,श्री सोनु पालीवाल, श्री गोपाल मालविया, नरेंद्र भालसे, स्वाति तिवारी सहित महाविद्यालय स्टाफ उपस्थित रहा।

संचालन प्रो जितेश्वर खरते एंव आभार संगोष्ठी के सह संयोजक प्रो अरुण सेनानी ने माना। अतिथि का परिचय डॉ संतोषी अलावा एवं प्रो राजेश नावड़े ने दिया। यह राष्ट्रीय संगोष्ठी आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग नई दिल्ली व देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कि गई। यह जानकारी संगोष्ठी संयोजक प्रो राजेश नावड़े वह सहसंयोजक प्रो अरुण सेनानी ने दी। शुक्रवार को वार्षिक स्नेह सम्मेलन में प्रश्न मंच, वाद-विवाद प्रतियोगिता और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा।
