आदिवासियों के त्योहारों का वैज्ञानिक आधार बहुत मजबूत होता है- डॉ. प्रकाश सोलंकी

बडवानी।
जनजाति आदिवासी समुदाय में इन दिनों त्योहारों का समय चल रहा है। चाटली निवासी शासकीय महाविद्यालय पानसेमल में पदस्थ आदिवासी समाज के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सोलंकी के द्वारा बताया गया है कि प्रत्येक गांव में नीलपी /दिवासा मनाने का समय अलग अलग होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि सामान्यतः सभी की रिश्तेदारी आसपास होती है, और त्योहारों के समय बहन बेटी, सगे संबंधी को एक दूसरे के यहां मेहमान बुलाया जाता है। त्यौहार की तिथि तय करते समय गांव पटेल, पुजारा, वारती गांव डाहला और गांव के गणमान्य लोग इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं। इस दौरान त्योहार की तिथि तय हो जाने के बाद यदि गांव में गमी या कोई बुजुर्ग व्यक्ति अस्वस्थ हो तब भी जनजाति आदिवासी समुदाय त्यौहार नहीं मनाता है। उपरोक्त सभी मिलकर आगे की तारीख तय करने के उपरांत ही त्यौहार मनाया जाता है।
डॉ. सोलंकी ने जनजाति समुदाय के त्योहारों का वैज्ञानिक कारण बताते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय भले ही वर्तमान आधुनिक शिक्षा दूर रहा हो, किंतु प्रकृति संरक्षण का ज्ञान हजारों वर्षों पहले ही प्राप्त कर लिया था। आदिवासियों के त्योहारों का वैज्ञानिक आधार बहुत मजबूत होता है। जैसे दिवासा /नीलपी पूजन यह पूजा मुख्य रूप से गोबर एवं सागवान के पत्ते की ही पूजा मानी जाती है। गाय का गोबर इको फ्रेंडली, प्राकृतिक होकर टॉक्सिक नहीं होता है इसमें एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। इसका उपयोग करने से घर फंगस एवं बैक्टीरिया रहित अर्थात माइक्रो ऑर्गेनीज्म प्रभाव नहीं होता है। दिवासा पर्व पर सागवान के पत्ते की पूजा भी जाती है। इसका प्रमुख कारण भी प्रकृति संरक्षण ही है। सागवान में अनेकों औषधीय गुण होने के साथ-साथ इनके पत्तों में प्राकृतिक डाई का गुण भी पाया जाता है। आदिवासी समुदाय की संस्कृति अत्यंत प्राचीन होकर सदैव ही प्रकृति पूजक एवं संरक्षक रही है।