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सेंधवा। मनुष्य को अपना जीवन महापुरूषों की भंति व्यतीत करना चाहिये- गणधर मुनि विवर्धनसागरजी

सेंधवा। जीवन जीना महत्वपूर्ण नहीं वरन् जीवन कैसे जीया जाए, यह महत्वपूर्ण है। मौज-मस्ती एवं खाना-पीना करके जीवन व्यतीत कर दिया तो पशुजीवन व मानव जीवन में क्या अन्तर रह जाएगा। मनुष्य को अपना जीवन महापुरूषों की भंति व्यतीत करना चाहिये। तभी मनुष्य जीवन की सार्थकता है।
उक्त विचार दिगम्बर संप्रदाय के गणाचार्य श्री विरागसागरजी महामुनिराज के शिष्य गणधर मुनि विवर्धनसागरजी ने मंगलवार को शिक्षा प्रसारक समिति द्वारा संचालित जोगवाड़ा रोड़ स्थित नवनिर्मित स्कूल भवन में विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहे। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि आज निश्चित ही बड़ा शुभ दिन है आज ही हमारे गुरू राष्ट्रसंत विरागसागरजी का दीक्षा दिवस का पावन अवसर है और यह पुनीत अवसर शिक्षा प्रसारक समिति के परिसर में आयोजित हो रहा है।

गुरू के 10 संदेश से मानव जन्म सार्थक होगा-
गणधर मुनि विवर्धनसागरजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारे गुरू के 10 संदेश थे, यदि हम सभी अपने जीवन के आचरण में इसे उतारते है तो हमारा मानव जन्म लेना सार्थक होगा। गुरू का संदेश था कि जीवन में हर पल उत्साह को बनाए रखें, विपरीत परिथितियों में भी कभी निरूत्साहित नहीं हो। हमेशा शिष्टाचार याने अच्छे आचरण का दृढ़ता से पालन करें। समय के पाबंद रहें, समय का दुरूपयोग नहीं करें। जीवन में जो भी कार्य करें कार्य कुशलता के साथ मन लगाकर करें, सफलता के आप करीब होंगे। आपने कहा कि जीवन में अनेक अवसरों पर हमारी इच्छा के मुताबिक कार्य नहीं होते है, ऐसी स्थिति में सहनशीलता दृढ़ता के साथ बनाएँ रखे। जीवन में जो भी लक्ष्य तय करें उसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहें, साथ ही निष्ठावान एवं कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान को बनाएँ रखेे। प्रत्येक व्यक्ति को भाग्य के भरोसे न रहते हुए पुरूषार्थशील रहना चाहिए। सदैव सकारात्मक सोंच रखें, असफलता मिलने पर भी नकारात्मक सोच अपने भीतर ना आने दे। अंत में आपने कहा कि परोपकार, करूणा एवं दया के भाव बनाए रखे। भगवान महावीर के सिद्धांत जियो और जीने दो को आत्मसात करें, फिर आप देखे आपके जीवन में शांती एवं समाधि की अनुभूति तो होगी ही, दुसरों के मन भी आपके प्रति आदर के भाव बने रहेेंगे।

संस्था का सौभाग्य है संतो का आगमन-
संस्था अध्यक्ष बी.एल. जैन ने अपने उदबोधन में दिगम्बर जैन संतों के कड़ी तपस्या एवं उनकी जीवनचर्या से अवगत कराते हुए कहा कि पूरे विश्व में दिगम्बर जैन संतों की भांति तपस्या एवं सख्त क्रियाओं का पालन कोई अन्य नहीं कर पाते है। इसीलिए आप सभी के लिए श्रृद्धा के पात्र होते है। आपने कहा कि हमारी संस्था का यह सौभाग्य है कि जिस नवनिर्मित स्कूल भवन का उद्घाटन मात्र 23 दिवस पूर्व हुआ हो, उस भवन में 9 संत एवं 8 माताजी का आगमन यहां हुआ है। निश्चित रूप ऐसे महान संतों का आशीष इस सरस्वती के मंदिर में अध्ययनरत विद्यार्थियों को मिलेगा, जो हमारे देश के भविष्य है। धर्म सभा का शुभारंभ श्रीमती मोनिका जैन द्वारा मंगलाचरण का पाठ करके किया गया। उसके पश्चात् माताजी द्वारा नवकार मंत्र का जाप कर उसकी महत्ता को बताया गया। धर्म सभा में पूर्व अध्यक्ष पीरचंद मित्तल, दिलीप कानूनगो, उपाध्यक्ष रविन्द्रसिंह मण्डलोई, सचिव शैलेष जोशी, कोषाध्यक्ष गोंिवद मंगल, सहसचिव दीपक लालका, अशोक पाटनी, अशोक सकलेचा, राजेन्द्र कांकरिया, स्कूल विद्यार्थी एवं शिक्षक, शिक्षिकाएं मौजूद थें।

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