वन विभाग करेगा विलुप्त हो रहे गिद्धोें की तलाश 17 से शुरू होगा विशेष सर्वेक्षण, तीन दिन तक सभी रेंज, बीट और डिविजन स्तर पर तलाशे जाएंगे गिद्ध
12 साल बाद मांडू में नजर आए 2 इजिप्शियन सफेद गिद्ध गिद्धो की तलाश के लिए शुरू होगा सर्वेक्षण।

आशीष यादव धार
मालवा क्षेत्र में तेजी से लुप्त हो रही गिद्धों की प्रजातियों को खोजने के लिए वन विभाग 17 फरवरी से तीन दिवसीय विशेष अभियान शुरू करेगा। इस अभियान के तहत गिद्धों की मौजूदगी का पता लगाया जाएगा और उनकी संख्या का आंकलन किया जाएगा। इस अभियान के तहत सभी बीट, रेंज और डिवीजन स्तर पर जानकारी एकत्र की जाएगी।
गिद्ध पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, वे मृत जीवों को खाकर प्राकृतिक सफाई का कार्य करते हैं। पिछले वर्ष धार सहित प्रदेश भर गिद्ध की गणना कर देखे गए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि गिद्धों की संख्या में लगातार आ रही गिरावट को देखते हुए यह पहल बेहद महत्वपूर्ण है। जिले से गिद्ध पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं और कुछ स्थानों पर इनकी मौजूदगी बेहद कम हो गई है। वन विभाग और वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ इस अभियान के जरिए 17 से 19 फरवरी तक व्यापक सर्वेक्षण कर गिद्धों की पहचान और संरक्षण पर काम करेंगे।
इसको लेकर विभाग स्कूलों में जाकर गिद्ध गणना प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन कर रहे। इस अभियान का नेतृत्व
धार डीएफओ अशोक सौलंकी व एसडीओ धनसिंह माइड़ा एवं रेंजर के. पी. मिश्रा करेंगे। वन विभाग की टीम विभिन्न क्षेत्रों में जाकर गिद्धों की उपस्थिति, प्रजातियों और संख्या का आकलन करेगी। गिद्ध संरक्षण के महत्व को रेखांकित करते हुए अधिकारियों ने बताया कि यह गणना वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। गिद्ध पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
इसलिए महत्वपूर्ण गिद्ध:
डीएफओ सोलंकी ने बताया कि गिद्ध ऐसा पक्षी है जो पशुओं के शवों का भक्षण कर मनुष्य को प्राकृतिक संकट से बचाता है। इसकी अनुपस्थिति में प्रकृति की त्रुटि रहित व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है। अब तक किए गए सर्वे और अध्ययन में मप्र में 7 प्रजातियों के गिद्ध पाए गए हैं। इनमें से 4 प्रजाति स्थानीय और प्रजाति प्रवासी हैं। यह शीत काल समाप्त होते ही वापस चले जाते हैं। वन विभाग के रणशोरे ने बताया कि अब तक गिद्धों की उपस्थिति को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। हालांकि, पिछले वर्ष मांडू क्षेत्र में कुछ गिद्ध देखे गए थे। वर्ष 1990 और 2000 के दशक में सफेद पीठ वाले गिद्धों की संख्या थी जो अब बिल्कुल नगण्य है। गिद्धों के लुप्त होने का पर्यावरण पर सीधा असर देखा जा सकता है। अब गिद्धों की अनुपस्थिति में चूहे, जंगली कुत्ते और अन्य मांसाहारी जीवों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
मानव के कारण विनाश की ओर प्रजाति:
जहरीले पदार्थों व शिकार ने कम कर दी गिद्धों की संख्या
गिद्धों की संख्या में गिरावट का एक प्रमुख कारण डाइक्लोफेनैक नामक दर्द निवारक दवा है, जिसे मवेशियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता था। जब गिद्ध इन मवेशियों के शवों को खाते थे तो उनके शरीर में यह दवा पहुंचकर घातक साबित होती थी। हालांकि इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन तब तक गिद्धों की अधिकांश आबादी नष्ट हो चुकी है। इसके अलावा, पर्यावास विनाश, भोजन की कमी, शिकार और जहरीले पदार्थों का सेवन भी गिद्धों की संख्या में गिरावट का कारण हैं। जंगलों की कटाई और शहरीकरण के चलते इनके घोंसले बनाने के स्थान खत्म हो गए। वहीं अवैध शिकार के मामले भी सामने आए थे। गिद्धों की 6 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन मालवा क्षेत्र में केवल एक प्रजाति सफेद पीठ वाला गिद्ध की मौजूदगी की संभावना जताई जा रही है।
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गिद्धों की प्रमुख प्रजातियां
-भारतीय गिद्ध
-सफेद पीठ वाला गिद्ध
-लंबी चोंच वाला गिद्ध
-हिमालयी गिद्ध
-राजगिद्ध
-मिस्र गिद्ध
जिले की टीम बनाई है:
गिद्धों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जिले में वन विभाग द्वारा 17 फरवरी से गिद्धों की वर्तमान स्थिति का आंकलन करने और उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए सर्वेक्षण करेगा। बैठे हुए गिद्धों की ही गणना की जाती है, इसके लिए बीट प्रभारियों सहित अन्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया है। पिछली बार मांडू में दो सफेद गिद्ध इस बार नजर आए हैं। जिनकी रिपोर्ट ऊपर पहुंचा दी गई थी।
अशोक सोलंकी, डीएफओ, धार
तीन दिन चली गणना:
अभी 17 फरवरी से तीन दिन गणना चली। मांडू गिद्ध खोह में दो सफेद गिद्ध देखें थे । जब से इनकी गणना शुरू हुई तब से अब 2024 में यह नजर आएं है। अब यहां गिद्धों का स्थायी वास हो रहा है।
धनसिंह मेड़ा, एसडीओ धार