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जन के मन की बात को आगे बढ़ाया सूबे के बड़े साहब ने मामला पीथमपुर में यूनियन कार्बड्रिड का कचरा जलाने का

विरोध में गूंज उठी पीथमपुर की सड़कों पर निकली मशाल यात्रा हजारों लोग मशाल लेकर निकले, बोले - प्राण चले जाए लेकिन कचरा नहीं जलने देगे।

आशीष यादव धार

खबरें आई है कि सूबे के बड़े ठाकुर साहब ने साहस दिखाया। अमेरिका की भगोड़ी कंपनी यूनियन कार्बाइड के जहरभरे कचरे को जलाने के मामले में आप कह रहे हैं या कहना पड़ा कि इससे कोई नुकसान नहीं, जब इसे जलाया जाएगा तब वहां हम भी होंगे। यानी सबकुछ जहर मुक्त है।
यह बात आते ही हर आम और खास की इस बात को फिर बल मिलता है कि जहरीला कचरा जलाने से कोई नुकसान ही नहीं है तो फिर भोपाल में ही क्यों नहीं इसका तिया-पांचा यानी निपटारा कर दिया जाए? या अब तक क्यों नहीं कर दिया गया। क्यों नहीं अमेरिका ने अब तक इस अपशिष्ट के निपटारे की जवाबदारी ली या इसके लिए उसे माध्य क्यों नहीं किया जा रहा। पहले सरकार और अब बड़े ठाकुर साहब की बात पर यकीन करते हुए देश-दुनिया यही कह रही है कि जो जहर बेदम हो चुका है, उसके लिए इतना दम लगाने की क्या जरूस्त आन पड़ी?


खतरा नहीं है, तो उसको पीथमपुर ले जाकर एक कंपनी विशेष ‘रामकी’ जो अब अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनी का हिस्सा है, उसके प्लांट पर उरस्की शतों के अनुसार जलाने का क्या औचित्य है। इस कंपनी की इस चक्कर में क्या-क्या जतन नहीं करने पड़ गी हैं और क्या-क्या नहीं करना पड़ा, उसकी जानकारी शायद बहुत कम लोगों को हो। फिर भी इतना सब वह खुद होकर क्यों कर रही है? ऐसे सवाल उठना स्वाभाविक है। जब बड़े ठाकुर कहते हैं कि टेक्नोलॉजी, अदालत, सरकार सथ पर भरोसा है इसलिए उनकी बात पर भरोसा करते हुए यह माना जाए कि ऐसा कचरा, जिसमें जहरीले रस्सयन नहीं है, जो डीकंपोज हो चुके हैं या निष्क्रिय है और इनका पूरा केमिकल कंपोजिशन मालूम किया जा चुका है। जनता भी यही कह रही है, ती फिर बड़ी आसानी से इसे भोपाल में ही जलाकर दफन क्यों नही किया जा सकता है। पहले नहीं तो अब ही सही।

वैसे बड़े ठाकुर साहब तौल-मोल कर ही बोलते हैं। उनकी बात में दम होता है। अध्ययनशील है, संजीदा है, संवेदनशील हैं। जनसरोकार से नाता रखने वाले सुशासन और समाजहित के साथ टेक्नोलॉजी फ्रेंडली इनोवेटिव कामकाज करने वाले बड़े ठाकुर बड़ी बातें ऐसे ही नहीं बोलते। उनकी गूढ़ बातों को समझना आसान नहीं। चाटुकार पत्रकार भी उनसे खुलकर बात नहीं कर पाते और जब छोटे बड़े ठाकुर साथ में मिलकर कोई बात कहें तो उसका महत्व इसकी गहराई समझी जा सकती है और उसके निहितार्थ समझने में जिनकी रुचि होती है, वे उसके मतलब भी निकालते हैं, क्योंकि चार में से दो सप्ताह तेजी से बीत चुके है। एक पखवाड़ा बचा है, जो निर्णायक है। चिंगारी भीतर ही भीतर सुलग चुकी है। हल्ला-गुल्ला बेहतर व्यूा रचना और प्रबंधन से शांत होता जा रहा है। यह करवाया जा रहा है। जनता को जागरूक किया जा रहा है कि कचरे में जहर नहीं सिर्फ कचरा है। उल्टी गिनती शुरू होते ही सब कुछ स्वाहा करवा दिया जा सकता है या ट्रायल के साथ सब कुछ अग्नि को समर्पित करते हुए अमेरिकी कंपनियों के पाप का कलंक धोने की कोशिश होगी।

बंधे हाथ ठाकुर के:
पीथमपुर में जहरीला कचरा जलाने से इंदौर मह पीथमपुर और दूरदराज के इलाके प्रभावित नहीं होंगे, इस तथ्य को हजम करना आसान नहीं है। दुर्भाग्य यह है कि मालवा के ठाकूर के हाथ फिर से बंधे हुए नजर आ रहे हैं। पहले की सत्कार में भी बचे हुए हाथ अभी जाकर किसी तरह खुले, लेकिन वैसा अब नजर नहीं जा रहा है। रामकी कंपनी के सामने झुकना या सका बेहतर विकल्प नहीं तलाशना भी सवालों से घिरा है। वास्तविकता यह है कि गुजरात महाराष्ट्र और अन्य राज्यों और विदेश में बेहतर परम सत्र है। हवाला राज्य के औद्योगिक कचरे को निपटने के नियम-कायदों का भी दिया गया है। जानकारों के लिए इसका कोई नहीं है, मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। न्यायपालिका की आड़ लेकर सरकार बकरी है जनता नहीं चाहती

राज्य और केंद्र सरकार उदासीन क्यों
सरकार चाहती तो रातोयत भोपाल में ऐसा ही प्लांट या इससे बेहतर टेक्नोलॉजी का प्लांट अमेरिका की डीव से या रामकी कंपनी की भाई-बाप अमेरिकी कंपनी केकेआर से ही लगवा सकती थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह हमारी सरकार कह सकती है कि अमेरिका की यूनियन कार्बाइड जो अब डाँव कंपनी में समा गई, अपने इस जहर को जहां से लाए, वहीं ले जाए। ऐसा नहीं होने से लोगों के मन में सवाल आना स्वाभाविक है कि क्या बीते 10 वषों के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व शक्ति की तरह आंख में आंख हालकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात नहीं कर सकते।

कांग्रेस के पाप से बचे भाजपा सरकार:
कांग्रेस के शासनकाल में हुए पाप के कलंक को भाजपा की सरकार क्यों माथे लगाना चाहती है। यदि कोई मजबूरी है तो उसे सार्वजनिक क्यों नहीं कर दिया जाता। अंतसाष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है अमेरिका का दबाव है इसलिए सरकार कुछ नहीं कर पा रही है, तो सरकार इसे स्पष्ट कर दे। हो सकता है जनता अपनी सनातनी भाजपा की सरकार की खातिर फिर से जहर पीने को तैयार हो जाए। जैसा अमेरिका की खातिर कांग्रेस के राज में हुआ और अपराधी को आसानी से अमेरिका मगाने का मौका देते हुए। माफ भी कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय बाजार पर नजर:
इस जिज्ञास्त के साथ कि रामकी कंपनी भोपाल में इससे बेहतर भस्मक सयंत्र क्यों नहीं लगा सकी, इससे तो रामकी का धंधा ही बढ़‌ता। अमेरिका की कंपनी के द्वारा अधिग्रहित हो जाने के बाद इस कंपनी की मार्केट वैल्यू वैसे ही 10 गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है। पीथमपुर में इस बेचारे बदनाम कचरे का निपटारा होते ही रामकी की मार्केट वैल्यू आसमान छूने लगेगी, यानी 10000 करोड़ से 12000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है, तो फिर जिज्ञासावश समझदार वर्ग द्वारा कहा जाने लगता है कि कहीं यह सारा खेल बाजार की ताकतों के इशारे पर तो नहीं हो रहा है। ऐसे सवाल और ऐसी ही एनालिटिकल न्यूज बहुत सारे बड़े पत्रकार कहलाए जाने वाले सत्ता और चाजार के शुभचिंतकों के लिए यह सब काल्पनिक या मूर्खतापूर्ण या अज्ञान से भरी बात हो सकती है, हो सकता है यह भी अतिशयोक्ति हो कि जो कंपनी कचरा जलाना चाह रही है वह पीथमपुर के बहाने दुनिया के घातक जहरीले रसायनों के निषटान के बहुत बड़े वैश्विक बाजार पर प्रभुत्व कायम करना चाहती है। घातक अपशिष्ट प्रबंधन और उसके निस्तारण का विशाल अंतरराष्ट्रीय बाजार खड़ा हो चुका है, जिस पर बड़े-बड़े कारोबारियों और ताकतवर देशों की नजर है।

सनातनी सरकारों से सतयुग की अपेक्षा
मुश्किल यह है कि सनातन के इस दौर में जनता अपनी सनातनी सरकार से सतयुग जैसी अपेक्षाएं करने लगी हैं। जहरीले कचरे के मामले में जनता इसीलिए ईमानदारी, पारदर्शिता, न्यायोचित, जनहितैषी पक्ष चाहती है। बता दें कि 337 मौद्रिक टन यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा भोपाल से पीथमपुर भेजा जा चुका है। इसका निस्तारण रामकी इनवायरों के इंसीनेटर में किया जाना है।

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