आचार्यश्री प्रसन्न ऋषि महाराज की मंगल प्रेरणा से भवन बनकर लगभग तैयार- पंच कल्याणक की तैयारियां शुरू
ए.बी. रोड स्थित नवनिर्मित ऋषि तीर्थ पर 27 फरवरी से 3 मार्च तक पंच कल्याणक
इंदौर, । क्षमा एक तप है। क्षमा एक पवित्र धर्म भी है। प्रतिकूलता में भी जो स्वयं को शांत रख सके वह क्षमाधारी है। गाली सुनकर भी जिसके हृदय में खेद तक उत्पन्न न हो, वह क्षमाधारी है। भरी सभा में कोई हमारे अवगुणों का वर्णन करें और फिर भी हम उत्तेजित न हो तो हम क्षमाधारी हैं। किसी की गाली और खोटे वचनों को सहन करना भी बहुत बड़ा तप है। क्षमा का भाव रखने वाला हमेशा सुखी रहता है। सामने वाला असमर्थ हो तब भी उसे क्षमा ही करना चाहिए। वास्तव में क्षमाशील वही है, जो असमर्थों को भी क्षमा कर देते हैं।
ये दिव्य विचार हैं आचार्य श्री प्रसन्नऋषि महाराज के, जो उन्होंने इंदौर महानगर के प्रवेश द्वार ए.बी. रोड हाईवे पर बन रहे ‘ऋषि तीर्थ ’ पर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि प.पू. आचार्यद्वय कुशाग्रनंदी म.सा. एवं आचार्य प.पू. पुष्पदंत सागर म.सा. की मंगल प्रेरणा और आशीर्वाद से मांगलिया स्थित एबी रोड हाईवे पर ‘ऋषि तीर्थ ’ बनकर लगभग तैयार हो चुका है। इस जिनायतन और जिनबिम्ब का सात दिवसीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव भव्य पैमाने पर आगामी 27 फरवरी से 3 मार्च तक अनेक साधु-साध्वी, भगवंतों एवं श्रमण-श्रमणियों के सानिध्य में आयोजित किया जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा मुंबई के पं. प्रतीप मधुर एवं पं. नितिन झांझरी संपन्न कराएंगे। पाषाण से परमात्मा बनने की यात्रा का यह भव्य आयोजन श्रीमज्जजिनेन्द्र पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सभी जैन बंधुओं को सहभागिता एवं पुण्यार्जन के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रारंभ में ट्रस्ट की ओर से अंकुर पाटनी, दिलीप जैन, राजकुमार जैन एवं पंचकल्याणक के प्रचार सचिव ऋषभ पाटनी ने आचार्यश्री की अगवानी की। आचार्यश्री ने क्षमा की बहुत सुंदर शब्दों में परिभाषा और व्याख्या प्रस्तुत की।
आचार्यश्री ने कहा कि जिस दिन हम अपने जीवन से लोभ को अलविदा कह देंगे उस दिन जीवन में एक नई ऊर्जा और शांति का अनुभव करेंगे। लोभी की आसक्ति ही हमें शौच धर्म को प्राप्त नहीं करने देती। शौच धर्म हमें यही सिखाता है कि लोभ को त्यागो तभी लाभ होगा। लोभ एक तरह से दीमक की तरह है, जो हमारे व्यवहार के गुणों को नष्ट कर देता है। हम जीवनभर शोहरत और धन संपत्ति को ही सबसे बड़ा समझने लगते हैं। चिंतन करें कि जब यह शरीर छूट जाएगा तो फिर हमारी लोभ की प्रवृत्ति किसके काम आएगी। लोभ का त्याग ही हमें अच्छा और सच्चा इंसान बनाएगा