राम और कृष्ण सनातन संस्कृति के प्राण तत्व, इसीलिए हमारी संस्कृति शाश्वत थी, है और रहेगी –भास्करानंद
गीता भवन पर भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मने राम और कृष्ण के जन्मोत्सव
इंदौर। गीता भवन सत्संग सभागृह में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ में वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। हजारों भक्तों ने कृष्ण जन्म प्रसंग की जीवंत झांकी का आनंद लिया। इस अवसर पर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि राम और कृष्ण के बिना भारत भूमि पर धर्म और संस्कृति की कल्पना भी संभव नहीं है। कृष्ण इस पुण्य धरा के कण-कण में और राम जन जन के रोम-रोम में रचे बसे हैं। सनातन संस्कृति के प्राण तत्व राम और कृष्ण ही हैं और इसी कारण हमारी सनातन संस्कृति शाश्वत बनी हुई है।
कृष्ण जन्मोत्सव के लिए कथा स्थल गीता भवन को विशेष रूप से फूलों एवं गुब्बारों से सजाया गया था। अनेक बच्चें भी भगवान के श्रृंगार में सजकर आए थे। जैसे ही कृष्ण जन्म का प्रसंग आया, और नंद बाबा एवं देवकी (हरि- अरुणा अग्रवाल), वासुदेव (प्रवीण अग्रवाल) नन्हे कृष्ण को सुसज्जित टोकनी में ले कर कथा स्थल पहुंचे, ‘मुरली वाले कन्हैया, बांसुरी वाले कन्हैया‘…. आलकी की पालकी जय कन्हैयालाल की…. भजन पर समूचा सभागृह थिरक उठा। हर कोई कृष्ण जन्म की मस्ती में डूबा रहा। माखन मिश्री के प्रसाद वितरण ने इस उत्सव के उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया । इसके पूर्व राम जन्म प्रसंग का उत्सव भी पूरे जोश एवं उत्साह के साथ मनाया गया। साध्वी कृष्णानंद ने अपने मनोहारी भजनों से आज भी सत्संग सभागृह को थिरकाए रखा। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, कैलाश-कांता गोयल, गोविंद अग्रवाल, हरि अग्रवाल, राजमल गर्ग, दीपक अग्रवाल, गौरव अग्रवाल, सुरेश मामा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। गीता भवन में श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ का यह दिव्य अनुष्ठान में15 को महारास एवं रुक्मणी विवाह तथा समापन दिवस पर 16 सितम्बर को सुदामा चरित्र एवं फूलों की होली के साथ समापन होगा।
स्वामी भास्करानंद ने कहा कि हमारे अहंकार का विसर्जन किए बिना कोई कार्य सफल नहीं हो सकता। गुरू और भगवान के दरबार में जब भी जाएं, सहज और नम्र भाव से जाएं। दुष्ट व्यक्ति वह होता है जो अपने स्वार्थ या लोभ के कारण तुरंत रंग बदल लेता है। उसे यदि हमसे कोई लाभ होता हो तो वह तुरंत चले आता है अन्यथा देख कर भी अनदेखा कर देता है। भगवान गुणी व्यक्ति को अपना लेते हैं, अवगुणी को भी। समुद्र मंथन में जब देवता लोग जहर लेकर भगवान शंकर के पास पहुंचे तो उन्होने पार्वती से पूछा कि इस जहर का क्या करूं, इस प्रसंग में यह संदेश निहित है कि गृहस्थी के महत्वपूर्ण निर्णयों में पत्नी की राय भी अवश्य लेना चाहिए। अपनी वाणी को संयमित रख कर हम दूसरों से अपना काम करा सकते हैं। कई बार वाणी भी जहर से ज्यादा घातक बन जाती है। मंथन से मदिरा निकली तो देवताओं ने उसे राक्षसों को दे दिया अर्थात मदिरापान करने वाले राक्षसी प्रवृत्ति के होते हैं। कृष्ण नाम के अमृत का पान करेंगे तो किसी सत्संग के पांडाल में गिरेंगे लेकिन मदिरा पान करेंगे तो खुद को ही पता नहीं रहेगा कि कहां गिरे हैं।