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रचनात्मकता में बदलाव ही किसी विधा की नियति तय करते है- सूर्यकान्त नागर 

रचनात्मकता में बदलाव ही किसी विधा की नियति तय करते है- सूर्यकान्त नागर

लघुकथा–मंथन 2023 सम्पन्न

मातृभाषा उन्नयन संस्थान ने किया आयोजन, लघुकथाकार हुए सम्मानित

इंदौर। मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा रविवार को हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में इंदौर प्रेस क्लब में आयोजित लघुकथा–मंथन 2023 में तेज़ी से लोकप्रिय होती साहित्य की विधा लघुकथा के सम्पादकीय दृष्टिकोण और युवाओं में लोकप्रियता पर हुआ सार्थक विमर्श।

 लघुकथा–मन्थन के उद्घाटन सत्र में लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की निदेशक कांता रॉय ने लघुकथा पेशेवर शिक्षा को लेकर आ रही है कहा तो तालियों की गड़गड़ाहट से उपस्थित लघुकथाकारों और साहित्यकारों ने समर्थन किया। 

सत्र की अध्यक्षता वीणा के सम्पादक राकेश शर्मा ने की।  दीप प्रज्वलन के उपरांत अतिथि स्वागत संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. नीना जोशी व इन्दौर टॉक के सह संस्थापक अतुल तिवारी ने किया। 

इस सत्र में डॉ अर्पण जैन के लिखे हिन्दी गान का लोकार्पण हुआ।

विमर्श सत्र की मुख्य वक्ता कांता रॉय ने लघुकथा के वर्तमान को बहुत अच्छा बताते हुए आशा व्यक्त की कि इसका भविष्य भी उज्ज्वल होगा। श्रीमती रॉय ने नवोदित रचनाकारों से कहा कि ’पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक अनभिज्ञ रहते है लघुकथा के मानकों से, यह एक बड़ी समस्या है। लघुकथा की कथावस्तु पर ध्यान नहीं दिया जाता है। विराम चिन्ह का बड़ा महत्त्व है। यह बात ध्यान रखने योग्य है।

लेखकों को प्रकाशन और सम्पादक का चयन करना चाहिए।’

संपादक राकेश शर्मा ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि ‘सर्जना सांस्कृतिक कर्म है और लेखक जब भाषा, संस्कृति, परम्परा, उद्देश्य को सम्मिलित करता है, तभी सर्जना सार्थक है।’

दूसरे सत्र में मुख्य अतिथि भोपाल के वरिष्ठ लघुकथाकार घनश्याम मैथिल व अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार सूर्यकान्त नागर जी ने की। अतिथि स्वागत संस्थान के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नीतेश गुप्ता व वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रघुवंशी ने किया।

श्री मैथिल ने कहा कि ‘लघुकथा रचनाशीलता का मानक है।’ अपने अध्यक्षयीय सम्बोधन में श्री नागर ने कहा कि ‘रचनात्मकता में बदलाव ही किसी विधा की नियति तय करते है। और जल्दबाज़ी में लिखी लघुकथाएं पूरी पकी हुई नहीं होती, अधपकी रचनाएं स्वीकार्य नहीं होगी। साथ ही साहित्यिक और सामाजिक स्तर पर रचना को प्रामाणिक करें।’

तीसरा सत्र लघुकथा पाठ का हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि प्रो. डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल व अध्यक्षता श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने की व विशेष आतिथ्य श्वेतकेतु वैदिक का रहा।

सत्र में अतिथियों का स्वागत मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शिखा जैन ने किया।

सत्र में संध्या राणे, इन्दौर, रमेशचन्द्र शर्मा जी, इन्दौर, सुनीता प्रकाश जी, भोपाल,

मधुलिका सक्सेना, भोपाल, अन्तरा करवड़े, इन्दौर, राममूरत राही, इन्दौर, डॉ. वसुधा गाडगीळ जी, इन्दौर, शेफालिका श्रीवास्तव, भोपाल, रेखा सक्सेना जी, भोपाल, सुषमा व्यास राजनिधि, इन्दौर, सरिता बघेला जी, भोपाल ने लघुकथा पाठ किया। 

बतौर सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल ने कहा कि ‘लघुकथाकार को अति बौद्धिकता, सपाटपन से रचना को बचाना होगा। जनता को जगाने के लिए जो काम आज़ादी के पूर्व कविता ने किया था, वह कार्य आज लघुकथा कर सकती है क्योंकि कविता से आमजन का मोह भंग हो गया है।’

अध्यक्ष अरविंद जवलेकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि ’सकारात्मक भाव से लघुकथा लेखन हो’

लघुकथा जैसी विधा पर एक विमर्श और मन्थन की दरकार रही है, उसी तारतम्य में यह महनीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें ऑफिसरियो, पंचौली रेस्टोरेंट, इन्दौर टॉक व मातृभाषा डॉट कॉम का सहयोग रहा। आयोजन में शहर के अरविंद सोनी, डॉ. संगीता भारूका, मुकेश तिवारी, अखिलेश राव,

मणिमाला शर्मा, डॉ सुनीता फड़नीस, डॉ. दीपा व्यास, डॉ. आरती दुबे, डॉ. ज्योति सिंह, जसमीत भाटिया, अशोक गौड़, जलज व्यास, , सहित कई साहित्यकार शामिल हुए। अंत में आभार कवि गौरव साक्षी ने माना।

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