इंदौर

अंधविश्वास की मौत – डॉ. रीना रवि मालपानी

लघुकथा

परिवर्तन संसार का नियम है और समय के अनुसार परिवर्तनों को स्वीकार करना ही समझदारी का संकेत है, पर दुनिया में कुछ लोग अभी भी अपनी जड़बुद्धि के कारण वहीं के वहीं स्थिर है। ऐसा ही एक परिवार था राधा का। राधा का विवाह कुछ समय पूर्व ही हुआ था। परिवार के लोगों में अर्थ की संपन्नता तो अत्यधिक थी पर उनकी सोच विस्तृत नहीं थी। शायद शिक्षा का अभाव भी परिवार में दिखाई देता था। राधा तो शिक्षित थी पर परिवार की मर्यादा के आगे अक्सर गलत निर्णय भी मौन स्वीकार कर लेती थी। कभी-कभी गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति राधा को उनका रवैय्या अच्छा नहीं लगता था, पर राधा सदैव मौन ही रहती थी।

विवाह के कुछ समय अंतराल के पश्चात् राधा ने गर्भावस्था की यात्रा तय करना शुरू किया। परिवार में चहुँ ओर प्रसन्नता और उमंग का माहौल दिखाई दे रहा था। प्रारम्भिक अवस्था में घरवालों की राय मानना बहुत जरूरी होता है तो राधा ने उन्हीं के मनोनुकूल निर्णयों को स्वीकार किया। उनकी राय में ज्यादा डॉक्टरी राय को मानना ठीक नहीं था। इसी के चलते उसके अल्ट्रासाउंड और समय पर जरूरी टेस्ट और वेक्सीनेशन भी कम हुए। राधा अपने भावी जीवन को लेकर काफी उत्साहित थी। सभी परिवार वालों ने गोद भराई का कार्यक्रम पूरी खुशी से किया। दिखावा, लेनदेन में कोई कमी नहीं छोड़ी, पर सारी कंजूसी और न्यूनता डॉक्टरी परामर्श में ही रही। कभी-कभी समय की चल उल्टी पड़ जाती है। डिलिवरी की तारीख नजदीक आ गई। राधा का वजन अत्यधिक बढ़ गया था क्योंकि वह गर्भावस्था में होने वाली डाईबीटीज़ से ग्रसित थी। पर्याप्त टेस्ट न होने की वजह से इस बीमारी की जानकारी नहीं हो पाई। अंत समय में डॉक्टर ने नॉर्मल डिलिवरी से मना कर दिया। गर्भावस्था के कुछ कॉमप्लीकेशन जो सोनोग्राफी नहीं होने की वजह से नहीं पता चल पाए उसमें प्लेसेन्टा की पोजीशन भी थी। इसके अतिरिक्त उसके यूट्रेस में गठान भी थी जिसके चलते बच्चे को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिली और पैरों की उँगलियों में कुछ असमानता रह गई। यह सारे परिणाम अंधविश्वास के चलते समय-समय पर डॉक्टरी परामर्श न लेने की वजह से हुए।

राधा की आशा अब निराशा में बदल गई। वह तो शिक्षित थी और विज्ञान को भी समझती थी, पर संस्कारों और मर्यादा की दुहाई के चलते आज उसके पास पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं था। उसकी आँसुओं की धार रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। शिशु के जन्म ने आज पूरे परिवार की आँखें खोल दी। जब राधा कभी डॉक्टरी परामर्श के लिए बोलती भी थी तो परिवारवाले अपने समय की दुहाई देते रहते थे कि हमारे समय में घर में ही चार-चार बच्चे हो जाते थे। आज सभी स्वयं को राधा का आरोपी समझ रहे थे। हमें समझना चाहिए कि परिवर्तित जीवनशैली के कारण कई प्रकार के परिवर्तन आए है जिन्हें समय के अनुरूप समझना जरूरी है। आज केवल अंधविश्वास के चलते राधा के सुनहरे भविष्य की मौत हो गई क्योंकि बच्चे को आजीवन शारीरिक अस्वस्थता से ग्रसित रहना पड़ेगा।

इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें समय अनुरूप बदलावों को समझना होगा और समय के अनुरूप उचित निर्णय लेने होगें। विज्ञान की सच्चाई को भी समझना होगा और संकोच आने पर उचित सलाह भी लेनी होगी। कभी-कभी अच्छे परिवर्तनों के लिए सबको मिलकर आवाज उठानी होगी वरना बाद में पछतावे के अलावा और कोई हल उपलब्ध नहीं होगा। समय रहते अंधविश्वास की मौत जरूरी है वरना हम जीवनभर खुद को कोसते रह जाएंगे।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

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