बुद्धि की शुचिता और पवित्रता के बिना हृदय में बैठे परमात्मा से साक्षात्कार संभव नहीं – मंदाकिनी

इंदौर, । बुद्धि की शुचिता और पवित्रता को हमारे ऋषि-मुनियों ने भी अत्यधिक महत्व दिया है। बुद्धि पवित्र होगी तभी हमारे हृदय में विराजमान परमात्मा से हमारा साक्षात्कार हो सकेगा। हृदय में ईश्वर होते हुए भी बुद्धि की मलीनता के कारण ही हम परमात्मा से साक्षात्कार नहीं कर पाते हैं। शिव विश्वास है और पार्वती श्रद्धा। श्रद्धा और विश्वास से ही हम अपने जीवन की नैया को भव सागर के पार लगा सकते हैं।
राम कथाकार दीदी मां मंदाकिनी श्रीराम किंकर के, जो उन्होंने संगम नगर स्थित श्रीराम मंदिर पर श्रीराम शिवशक्ति मंदिर शैक्षणिक एवं पारमार्थिक समिति के तत्वावधान में चल रही रामकथा में शिव महिमा की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। आज समाजसेवी प्रेमचंद गोयल भी विशेष रूप से कथा में उपस्थित रहे।
विद्वान वक्ता ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में सबसे पहले विद्या की देवी सरस्वती की वंदना की है। उसके बाद उन्होंने शंकर और पार्वती की वंदना की है। शिव विश्वास के मूर्तिमान रूप में मौजूद हैं, जबकि पार्वती साक्षात श्रद्धा का ही स्वरूप है। श्रद्धा और विश्वास के रूप में भवानी शंकर की वंदना की गई है। इन दोनों की कृपा इसलिए भी प्राप्त करना जरूरी है कि उनकी कृपा के बिना ईश्वर के दर्शन पाना संभव नहीं है, चाहे वह संसारी हो, साधक हो या सिद्ध हो। हमारे मन की अपेक्षाएं और कामनाएं ही हमारे दुख का कारण है। बुद्धि यदि पवित्र होगी तो मन को बुरे कामों से रोक देगी। मन को बांधने का काम बुद्धि ही करती है। बुद्धि की पवित्रता ही अंतर्मन के चक्षुओं को खोलती है। रोगग्रस्त और मलीन बुद्धि को निर्मल बनाए बिना परमात्मा का साक्षात्कार संभव नहीं है।