इंदौरधर्म-ज्योतिष
लाभ जब लोभ बन जाता है तो व्यक्ति का नैतिक पतन शुरू हो जाता है

इंदौर, । संसार का सबसे बड़ा दुख दरिद्रता है। लाभ जब लोभ में बदल जाता है, तब मनुष्य का नैतिक पतन होने लगता है। लाभ की प्रशंसा होती है और लोभ की निंदा। जब लोभ हमारे अंतःकरण में आ जाता है तब सोने के पहाड़ का न्यौता व्यक्ति स्वीकार कर लेता है। अर्थ के बिना जीवन नहीं चलता, लेकिन जब वह अर्थ अनर्थ बनने लगता है तब मनुष्य अपने लक्ष्य से भटक जाता है। राम और सीता भारतीय समाज के आदर्श दम्पति हैं, जिनके समूचे जीवन में कोई दोष या अवगुण नहीं है।
मानस मर्मज्ञ पं. अभिषेकानंद महाराज ने लोहार पट्टी स्थित श्रीजी कल्याण धाम के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीराम कथा में राम सीता विवाह प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व हंस पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में पं. पवनदास शर्मा, पंडित योगेंद्र महंत, गोपाल भारद्वाज, पुष्पा भारद्वाज, ज्योति शर्मा, राजेन्द्र वर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
पं. अभिषेकानंद महाराज ने कहा कि रामचरित मानस समाज का दर्पण है। हम इस दर्पण में स्वयं को देखने का भी प्रयास करें। हनुमानजी अद्भुत और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी है। उनके लिए सबसे पहला काम अपने आराध्य प्रभु राम की सेवा और आज्ञा पालन का रहा। सीताजी की खोज में सिंघिका नामक जिस राक्षसी के मिलने का जिक्र पुराणों में है, वह छिपकर छल-कपट से आक्रमण करने वाली राक्षसी है। सिंघिका केवल त्रेता युग में ही नहीं, आधुनिक युग में भी मौजूद है। हमारे अच्छे और शुभ संकल्पों के लक्ष्य को प्राप्त करते हुए जब हम आगे बढ़ते हैं तो इस तरह की राक्षसी प्रवृत्तियां आज भी हमारे मार्ग में बाधक बनती है। यह राक्षसी हमारे अंदर का इर्ष्या भाव है, जो हमें अच्छे लोगों की प्रगति में बाधक बनने के लिए उकसाता है। लाख कोशिश करने पर भी हममें से बहुत कम लोग इस इर्ष्या भाव से बच पाते हैं। हमारे पुण्य का जितना बैलेंस मृत्युलोक में होगा, स्वर्गलोक में भी हमें उसी अनुपात में भोग की सुविधा मिलेगी। यह अलग बात है कि देवता भी इस इर्ष्या भाव से बच नहीं पाते हैं। अपने दुख से ज्यादा दूसरों के सुख से हम ज्यादा दुखी रहते हैं। यह प्रवृत्ति ही हमें पतन की ओर ले जाती है।